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बिलकुल! नीचे दिया गया है पूरे 6 मिनट का प्रेरणादायक स्क्रिप्ट (हिंदी में) इस चित्र पर आधारित। यह नैरेशन वीडियो, स्टेज परफॉर्मेंस या पॉडकास्ट के लिए उपयुक्त है:

शीर्षक: "कबूतरों वाले बाबा – देने की ताक़त"
[धीमी, भावुक संगीत पृष्ठभूमि में शुरू होती है]
वाचक (धीमे, गहरे स्वर में):
एक समय की बात है... दुनिया दौड़ रही थी दौलत के पीछे, लोग एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे थे। हर कोई चाहता था लेना... लेकिन देने वाला कोई नहीं था।
मगर उसी दुनिया में, एक छोटी सी बस्ती के किनारे, दो अनोखे लोग रहते थे। एक खड़ा था—कंधे पर टोकरी, पीठ पर कुछ लकड़ियाँ, हाथ में एक दाना भरा टोकरा। और दूसरा—ज़मीन पर बैठा, लंबी दाढ़ी, सिर पर पगड़ी, आँखों में सुकून और चेहरे पर संतोष।
उनके चारों ओर उड़ रहे थे सैकड़ों कबूतर। ऐसे जैसे आसमान तक उनकी बातें पहुँचाने आए हों।
वो जो बैठा था, कभी बहुत अमीर था। बड़े-बड़े महलों में रहा, सोने-चांदी की कोई कमी नहीं थी। पर एक दिन उसने जाना, कि दौलत से सब कुछ खरीदा जा सकता है—पर सुकून नहीं।
और जो खड़ा था, वो एक साधारण आदमी था। हर दिन जंगल से लकड़ियाँ लाता, टोकरा भर दाना लाता और इन कबूतरों को खिलाता। लोग पूछते, “क्या मिलता है तुझे इन परिंदों को खिलाकर?”
वो मुस्कुराता और कहता— "मुझे कुछ नहीं चाहिए... जब ये उड़ते हैं ना, तो लगता है मेरी आत्मा उड़ रही है।"
एक दिन दोनों बैठे, और बातें होने लगीं।
बैठे हुए बाबा ने पूछा, "तू रोज़ इतना बोझ उठाता है, इतनी मेहनत करता है, सिर्फ इन पक्षियों के लिए?" उसने जवाब दिया, "हाँ, क्योंकि जब मैं इन्हें उड़ते देखता हूँ, तो मुझे लगता है मैं खुद हल्का हो गया हूँ।"
धीरे-धीरे, उनकी यह सेवा लोगों को दिखने लगी। बस्ती के लोग भी आने लगे—कोई एक मुट्ठी दाना लाता, कोई पानी की कटोरी। और फिर पूरा गांव इन कबूतरों का आश्रय बन गया।
वो कबूतर अब केवल परिंदे नहीं थे— वो बन गए थे उम्मीद, शांति, और प्रेम का प्रतीक।
आज भी कहते हैं लोग— अगर कभी कहीं बहुत सारे कबूतर एक साथ उड़ते देखो, तो समझ लेना… कहीं किसी नेक आत्मा ने बिना कुछ मांगे, सिर्फ दिया है।
"देने वाला कभी गरीब नहीं होता। और जो दूसरों के लिए जीता है, वही असल में सबसे अमीर होता है।"
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